चाँद नहीं, तारों की बात करती हूँ,एक नहीं हजारों की बात करती हूँ,
एडीयों से उठकर आसमान को छूना मेरी चाहत नहीं,
अपनी कशिश से उसे आँचल में संजोने की बात करती हूँ,
दिन का उजाला पसंद नहीं मुझको,
रातों की स्याही आंखों में भरनी है,
भीड़ में तनहा रहना नहीं मुझको,
तन्हाई में अपनी राह पकड़नी है.....................
No comments:
Post a Comment